'शेरशाह' फिल्म रिव्यू- कारगिल हीरो के देशभक्ति और जांबाजी की कहानी, सिद्धार्थ मल्होत्रा ने दिखाया दम

कहानी, पटकथा और संवाद- संदीप श्रीवास्तव

प्लेटफॉर्म- अमेज़न प्राइम वीडियो


Shershaah Movie Hindi Review



"एक टीचर का बेटा भी दिलेर आर्मी अफसर बन सकता है सर, फौजी फौजी होता है, कहीं भी पैदा हो सकता है", लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा (सिद्धार्थ मल्होत्रा) चेहरे पर मुस्कान और विश्वास के साथ अपने कमांडिंग अफसर (शतफ फिगर) को कहते हैं।


देशभक्ति और युद्ध क्षेत्र की कहानियां देखकर अक्सर सिहरन सी होती है। जब कहानी कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन विक्रम बत्रा की हो, तो फिल्म से उम्मीदें बढ़ना भी जाहिर है। 'शेरशाह' की कहानी एक ओर जहां आंखों में आंसू लाती है, वहीं दूसरी ओर विक्रम बत्रा की बहादुरी और जाबांजी प्रेरित करती है। फिल्म में कुछ कमियां हैं, जो कहानी के प्रभाव पर थोड़ा असर डालती है, लेकिन क्लाईमैक्स तक जाते जाते फिल्म संभल जाती है। ये फिल्म उन सभी 527 शहीदों को समर्पित है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर हमारी ज़मीन वापस हासिल की।


कारगिल युद्ध पर इससे पहले भी फिल्में बनी हैं और कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत से भी लोग अंजान नहीं हैं। ऐसे में दो घंटे पंद्रह मिनट तक फिल्म से जोड़े रखने के लिए दो बातें बेहद महत्वपूर्ण थीं- निर्देशक के कहानी पेश करने का अंदाज और सिद्धार्थ मल्होत्रा के अभिनय में सच्चाई और बेबाकी। अच्छी बात है कि फिल्म इन दोनों ही पक्षों में बढ़िया रही है।

कहानी

कहानी शुरु होती है विशाल बत्रा से, जहां वो एक टॉक शो में अपने भाई विक्रम बत्रा की कहानी दुनिया के सामने बयां करते हैं। पालमपुर के विक्रम बत्रा का बचपन से एक ही ख्वाब था, आर्मी ज्वॉइन करने का। अपने सपने का पीछा करते करते विक्रम ने साल 1996 में भारतीय सैन्य अकादमी में दाखिला लिया। प्रशिक्षण के बाद, 23 साल उम्र में विक्रम बत्रा को जम्मू और कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में बतौर लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। वो एक खुले दिल वाले बहिर्मुखी व्यक्ति थे, जिस वजह से वो जल्द ही किसी का भी दिल जीत लेते थे। वहीं, अलग अलग मौकों पर विक्रम बत्रा ने अपनी बहादुरी का भी परिचय दिया था।


Shershaah Movie Review


घर से अपने छुट्टियां कैंसिल कर कारगिल युद्ध के लिए वापस आते हुए विक्रम अपने दोस्त से कहते हैं, "या तो मैं तिरंगा लहराकर आऊंगा, या तिरंगे में लिपटा हुआ आऊंगा, पर मैं आऊंगा जरूर.."। 


फ्लैशबैक के जरीए हमें कॉलेज लाइफ में एक सिख लड़की डिंपल (कियारा आडवाणी) के साथ विक्रम का रोमांस देखने को मिलता है।वहीं, बाकी की फिल्म इस बात के इर्द-गिर्द घूमती है कि कैसे विक्रम बत्रा ने कारगिल में पाकिस्तान सेना के खिलाफ भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। और युद्ध के दौरान एक जख्मी सैनिक की जान बचाते हुए शहीद हो गए।




कारगिल युद्ध में विक्रम बत्रा ने जम्मू-कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन का नेतृत्व किया था। इस युद्ध के दौरान उन्हें 'शेरशाह' का कोडनेम दिया गया और उन्होंने जीत का कोड रखा- 'ये दिल मांगे मोर'।

अभिनय

अभिनय की बात करें तो विक्रम बत्रा के किरदार में सिद्धार्थ मल्होत्रा ने अच्छा काम किया है। हर दृश्य में इस किरदार को निभाने के पीछे उनकी मेहनत दिखती है। कियारा के साथ उनके रोमांटिक दृश्य हों या कारगिल युद्ध, सिद्धार्थ ने अपने अभिनय में एक लय बनाकर रखी है। परर्फोमेंस के लिहाज से कोई दो राय नहीं कि ये सिद्धार्थ की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। वहीं, डिंपल चीमा के किरदार में कियारा ने अच्छा काम किया है। उनकी सादगी दिल जीतती है। शरफ फिगर, शिव पंडित, हिंमाशु मल्होत्रा, साहिल वैद अपने किरदारों में सराहनीय हैं।

निर्देशन व तकनीकी पक्ष

डायरेक्टर विष्णु वर्धन ने इस फिल्म के साथ हिंदी फिल्मों में बतौर निर्देशक डेब्यू किया है। इससे पहले उन्होंने दक्षिण में अरिंथुम अरियामलम, पट्टियाल, बिल्ला, सर्वम जैसी फिल्में बनाई हैं।


शेरशाह में निर्देशक ने वॉर के दौरान विक्रम बत्रा की वीरता को दिखाने के साथ साथ उनके रोमांटिक एंगल को भी फिल्म में शामिल किया है। विक्रम बत्रा और डिंपल ने चंडीगढ़ में कुछ खूबसूरत महीने साथ गुजारे थे। लेकिन उनका रिश्ता कितना गहरा था, इसका अंदाजा उस दृश्य में होता है जब कारगिल युद्ध पर जाते हुए डिंपल भरी आंखों से विक्रम को देखती है.. वो क्षण आपको भी चुभता है। सिद्धार्थ और कियारा की जोड़ी में एक सादगी दिखती है। वहीं, युद्ध के मैदान में विक्रम का आक्रमक रवैया उनके व्यक्तिव्य के अलग पहलू को दिखाता है।

Director Sidharth Malhotra Kiara Advani
Cast Vishnuvardhan
Release Date 12 August 2021
Music B Praak, John Stewart, Jasleen Royal, Tanishk Bagchi, Javed-Mohsin, Mohsin Shaikh, Vikram Montrose


शेरशाह के वॉर सीन्स की बात करें तो विष्णु वर्धन ने बेहतरीन काम किया है।

निर्देशन व तकनीकी पक्ष

वहीं कमलजीत नेगी का छायांकन बेहतरीन है। एक ऐसी कहानी कहना, जो पहले से लोग जानते हैं.. यह काफी रिस्की साबित हो सकता था। लेकिन संदीप श्रीवास्तव के स्पष्ट लेखन ने फिल्म को बांधे रखा।


खास बात है कि लेखक- निर्देशक ने कहानी मेंप्रामाणिकता बनाए रखी है।एक दृश्य जहां एक पाकिस्तानी सैनिक बत्रा को ताना मारकर माधुरी दीक्षित को सौंपने के लिए कहता है या विक्रम अपने एक साथी को यह कहकर पीछे कर देते हैं कि 'तुम्हारे बीवी बच्चे हैं, तुम हट जाओ' और खुद को दुश्मनों के सामने कर देते हैं, लेखक संदीप श्रीवास्तव ने कई वास्तविक घटनाओं को फिल्म में शामिल किया है।


फिल्म 2 घंटे 15 मिनट लंबी है और यह भी एक सकारात्मक पक्ष है। एडिटर ए श्रीकर प्रसाद ने फिल्म की कहानी को ट्रैक से उतरने नहीं दिया है। फिल्म के कमजोर पक्षों की बात करें तो वह है साउंड डिजाइन, जो कि सोहेल सनवारी ने दिया है। साउंड डिजाइन वॉर फिल्म का एक महत्वपूर्ण पहलू होता है, जो कहानी में रोमांच बनाए रखने में भी मदद देता है, लेकिन शेरशाह का यह पक्ष कमजोर है। साथ ही फिल्म में रोमांचक मोड़ यानी कि सरप्राइज एलिमेंट्स की कमी है। सिर्फ विक्रम बत्रा ही नहीं, बल्कि कहीं ना कहीं हर किरदार की कहानी अनुमानित दिशा में ही आगे बढ़ती है।


फिल्म में महज दो गाने हैं, तनिष्क बागची द्वारा कंपोज किया गया 'रातां लंबियां' और जसलीन रॉयल द्वारा गाया और कंपोज किया गया गाना 'रांझा'; जो कि कानों को सुकून देते हैं।

देंखे या ना देंखे

कारगिल वॉर हीरो विक्रम बत्रा की जिंदगी को समझना चाहते हैं तो 'शेरशाह' देखी जा सकती है। हां, फिल्म में काफी क्रिएटिव लिब्रटी ली गई है, लेकिन उससे प्रभाव में कोई फर्क नहीं पड़ता। 24 वर्षीय एक युवा की वीरता और देशभक्ति की ये कहानी आपको प्रेरित करेगी। फिल्मीबीट की ओर से 'शेरशाह' को 3 स्टार।

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